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शायरी के नये दौर - भाग 1

अयोध्याप्रसाद गोयलीय

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :336
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1287
आईएसबीएन :81-263-0011-6

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प्रस्तुत है शायरी के नये दौर भाग-1....

shayari ke naye Daur(1)

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

समर्पण

श्रद्धेय राहुलजी,
उच्च शिखर पर स्वयं ही नहीं बैठे, अपितु तलेहटी में भटकते हुओं को भी उबारते रहते हैं। आपकी महानता, मानवता और विद्वता के प्रति ‘शाइरी के नये दौर’ के समस्त दौर श्रद्धा-भक्ति पूर्वक समर्पित।

विनीत
अ.प्र. गोयलीय

शाइर की बख़्शिशें1


ज़माने को औजे-नज़र2 बख़्शता हूँ
जो झुकता नहीं है, वह सर3 बख़्शता हूँ
दिले-ख़स को4 देता हूँ बिजली की शोख़ी
सदफ़ को5 मिज़ाजे-गुहर6 बख़्शता हूँ

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1.    शाइरी की देन, 2. दृष्टि की विशालता, 3. स्वाभिमानी मस्तक, 4. हृदय रूपी तिनके को, 5. सीप को, 6. मोती देने की शक्ति।


मैं ऐ ‘जोश’ ! इस दौरमें हूँ वह शाइर
अँधेरे में जिस तरह शाम-ए-फ़रोज़ाँ1
हरीफ़ोंके2 आगे मेरी शाइरी है,
कि है पेश तौरात3-ओ-इञ्जील4 क़ुरआँ5

दानाए-रमूज़े-ईं-ओ-आँहूँ6 ऐ दोस्त !
मौलाए-अकाबिरे-जहाँ7 हूँ, ऐ दोस्त !
क्यों अहले-नज़र8 पढ़ें न मेरा कलमा9
मैं शाइरे-आख़िर-उल-ज़माँ10 हूँ ऐ दोस्त !

हम पेशा-ओ-हमराज़से11 लड़ बैठते हैं,
दिल-परवरो12-दमसाज़से13 लड़ बैठते हैं,
अल्लाहो-शहंशाहका14 क्या ज़िक्र ऐ ‘जोश’ !
हम दिलबरे-तन्नाज़से15 लड़ बैठते हैं।

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1.प्रकाशमान दीपक, 2.प्रतिद्वन्द्वियोंके, 3.वह आसमानी किताब जो हज़रत मूसापर नाज़िल हुई, 4.ईसाई-धर्म-ग्रंथ, 5.कुरआ़न, 6.सब जानने योग्य बातों से भिज्ञ, 7.संसार के महापुरुषोंका नेता, 8.दृष्टिवाले, 9.ईमान लायें, गीत गायें, 10.वर्तमान युगका अन्तिम महान् शाइर, 11. समान जीविकावालों और अन्तरंग इष्ट-मित्रोंसे, 12. मित्रों, 13. साथी, 14. खुदा और बादशाहका, 15. गर्वीली प्रेयसीसे भी।


मैं ज़मींपर मुसहफ़े-एहसासकी1 तफ़्सीर2 हूँ
इश्क़की तनवीर3 ख़्वाबे-हुस्नकी ताबीर4 हूँ
जो दो आलम की हदें जकड़े हैं, वोह ज़ंजीर हूँ
मैं सितारोंकी ज़बाँ हूँ, चाँदकी तक़रीर हूँ

मेरी नज़्में रोशनी हैं, क़ल्बे-हक़-आगाहकी5
यह सुनहरी कुंजियाँ हैं, क़स्रे-महरो-माहकी6

शहद मेरी गुफ़्तगू है, साँस है, मेरी गुलाब
नुत्क़से7 नुमायाँ8 है तख़ैय्युलका9 शबाब10
पैकर-ख़ाकी11 हूँ लेकिन वह तिलिस्मे-आबो-ताब12
जिसके हर ज़र्रेमें13 गर्दिश14 कर रहा है आफ़ताब15

डालता हूँ परतवे-गुलशन16 ख़सो-ख़ाशाकपर17
अ़र्शकी18-मुहरें लगाता हूँ जबींने-ख़ाक19 पर

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1.ज्ञान, चेतनारूपी ग्रन्थकी, 2. टीका, भाष्य, 3. रोशनी, चमक, प्रकाश, 4. सौन्दर्य-स्वप्नका परिणाम, नतीजा, 5.वास्तविकताके ज्ञानीके हृदयकी, 6. सूर्य-चाँदके महलोंकी, 7. वाणीसे, 8. प्रकट, 9. कल्पनाका, 10, यौवन, 11. मिट्टीका बना, 12. चमक-दमक, 13. अणुमें, 14 घूमना, 15 सूर्य, 16. उद्यानकी परछाईं, 17. घास-पात पर, 18 आसमानकी, 19 पृथ्वीके मस्तक पर।


वारिसे-कौनेन1 हूँ मेरा कोई सानी नहीं,
मेरे क़दमोंपै झुकी रहती है, फ़ितरतकी जबीं2
मुसकराती है, ग़ुरूरे-अ़र्शपर3 मेरी ज़मी
ज़ालीमो-सरकश4 अ़नासिर5 हैं मेरे ज़ेरे-नगीं6

रक़्स7 करता है, निज़ामे-दहर8 मेरे साज़ पर
कारवाने-रूह9 चलता है, मेरी आवाज़ पर
मशअ़लोंको जब बुझा देगी हवा आफ़ाक़में11
यह कँवल रोशन रहेगा आँधियोंके ताक़में12


-फ़िक्रो-निशात


चूमने मेरी ज़बींको13 आस्माँ आता है ‘जोश’।
इस ज़मींको सिज्दा करने14 आस्माँ आता है ‘जोश’ !
वह है मेरा काब-ए-रिन्दी, जहाँ वक़्ते-गुरुब15
रोज़ हज करने गिरोह-कुदसिया आता है16 ‘जोश’ !

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1.दोनों लोक का अभिभावक, 2. क़ुदरतका मस्तक, 3. आसमानके घमण्डपर, 4. अत्याचारी, गुण्डे, 5 मट्टी-पानी, 6. नेतृत्वमें, रोब-दाबके आगे, 7. थिरकता है, 8. संसारकी व्यवस्था, 9. आत्माओंका यात्रीदल, 10.मसालोंको, 11. दुनिया, 12. आलेमें 13. मस्तकको, 14. माथा टेकने, 15. मेरा मदिरालय रूपी काबा वह है, जहाँ सूर्यास्तके बाद, 16 फ़रिश्तों अथवा वली अल्लाहोंके समूह हज़ करने आते हैं।


मेरे औजे-शाइरीके झुट-पुटेकी दीदको1
आस्माँनोंसे जमाले-कहकशाँ2 आता है ‘जोश’ !
मैं हूँ वह परवानए-फ़ानूसगीरो-शमअ़सैद3
जिसपै गिरने शोलए-हुस्ने-जवाँ4 आता है ‘जोश’ !

मैं वह क़स्सामे-जवानी5 हूँ कि जिसकी राह में
हुस्ने-ख़ूबाँ कारवाँ-दर-कारवाँ6 आता है ‘जोश’ !
मेरे साग़र-ज़ाद मैख़्वारोंकी ख़िदमतके लिए7
मुग़बचोंसे पेश्तर पीरे-मुग़ाँ आता है ‘जोश’8 !

मेरे क़सरे-शाइरी में9 गुनगुनानेके लिए
इंसो-जाँ क्या है10 ख़ुदा-ए-इंसो-जाँ11 आता है ‘जोश’
मेरे दरियाए-तख़ैय्युलसे रवानी माँगने12
बहरे-वक़्तो-चश्मए-उम्रे-खाँ आता13 है ‘जोश’ !


-सरूद-ओ-ख़रोश


1. मेरी शाइरीके चमत्कारको देखनेके लिए, 2. आकाश-गंगाका सौन्दर्य, 3. फ़ानूसका बन्दी पतंगा, 4. युवा सौन्दर्य रूपी दीप (भाव यह है कि जोश ऐसे आशिक हैं, जिनपर स्वयं सुन्दरियाँ मोहित होती रही हैं,) 5. जवानी बाँटनेवाला, 6. सुन्दरियोंके गिरोह-के-गिरोह, 7. मेरे साथ पीनेवालोंकी सेवामें, 8. शराब तक़सीम करनेके लिए छोकरोंके बजाय स्वयं मदिरालयका स्वामी, 9.कवितारूपी हृदय-महलमें, 10, मनुष्य और समस्त प्राणी, 11. मनुष्यों और प्राणियों का ख़ुदा, 12. कल्पनारूपी दरियासे बहाव माँगनेको, 13. स्वयं समयरूपी नदी और आयुरूपी स्रोता।


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